Tuesday, May 26, 2015

चार आने का हिसाब

बहुत समय पहले की बात है , चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था , दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसके महल में हर एक सुख-सुविधा की वस्तु उपलब्ध थी पर फिर भी अंदर से उसका मन अशांत रहता था। उसने कई ज्योतिषियों और पंडितों से इसका कारण जानना चाहा, बहुत से विद्वानो से मिला, किसी ने कोई अंगूठी पहनाई तो किसी ने यज्ञ कराए , पर फिर भी राजा का दुःख दूर नहीं हुआ, उसे शांति नहीं मिली।
एक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी , किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे और वह पेड़ की छाँव में बैठ कर भोजन कर रहा था।
किसान के वस्त्र देख राजा के मन में आया कि वह किसान को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दे दे ताकि उसके जीवन मे कुछ खुशियां आ पाये।
राजा किसान के सम्मुख जा कर बोला – ” मैं एक राहगीर हूँ , मुझे तुम्हारे खेत पर ये चार स्वर्ण मुद्राएँ गिरी मिलीं , चूँकि यह खेत तुम्हारा है इसलिए ये मुद्राएं तुम ही रख लो। “
किसान – ” ना – ना सेठ जी , ये मुद्राएं मेरी नहीं हैं , इसे आप ही रखें या किसी और को दान कर दें , मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं। “
किसान की यह प्रतिक्रिया राजा को बड़ी अजीब लगी , वह बोला , ” धन की आवश्यकता किसे नहीं होती भला आप लक्ष्मी को ना कैसे कर सकते हैं ?”
“सेठ जी , मैं रोज चार आने कमा लेता हूँ , और उतने में ही प्रसन्न रहता हूँ… “, किसान बोला।
“क्या ? आप सिर्फ चार आने की कमाई करते हैं , और उतने में ही प्रसन्न रहते हैं , यह कैसे संभव है !” , राजा ने अचरज से पुछा।
” सेठ जी”, किसान बोला ,” प्रसन्नता इस बात पर निर्भर नहीं करती की आप कितना कमाते हैं या आपके पास कितना धन है …. प्रसन्नता उस धन के प्रयोग पर निर्भर करती है। “
” तो तुम इन चार आने का क्या-क्या कर लेते हो ?, राजा ने उपहास के लहजे में प्रश्न किया।
किसान भी बेकार की बहस में नहीं पड़ना चाहता था उसने आगे बढ़ते हुए उत्तर दिया , ”
इन चार आनो में से एक मैं कुएं में डाल देता हूँ , दुसरे से कर्ज चुका देता हूँ , तीसरा उधार में दे देता हूँ और चौथा मिटटी में गाड़ देता हूँ ….”
राजा सोचने लगा , उसे यह उत्तर समझ नहीं आया। वह किसान से इसका अर्थ पूछना चाहता था , पर वो जा चुका था।
राजा ने अगले दिन ही सभा बुलाई और पूरे दरबार में कल की घटना कह सुनाई और सबसे किसान के उस कथन का अर्थ पूछने लगा।
दरबारियों ने अपने-अपने तर्क पेश किये पर कोई भी राजा को संतुष्ट नहीं कर पाया , अंत में किसान को ही दरबार में बुलाने का निर्णय लिया गया।
बहुत खोज-बीन के बाद किसान मिला और उसे कल की सभा में प्रस्तुत होने का निर्देश दिया गया।
राजा ने किसान को उस दिन अपने भेष बदल कर भ्रमण करने के बारे में बताया और सम्मान पूर्वक दरबार में बैठाया।
” मैं तुम्हारे उत्तर से प्रभावित हूँ , और तुम्हारे चार आने का हिसाब जानना चाहता हूँ;  बताओ, तुम अपने कमाए चार आने किस तरह खर्च करते हो जो तुम इतना प्रसन्न और संतुष्ट रह पाते हो ?” , राजा ने प्रश्न किया।
किसान बोला ,” हुजूर , जैसा की मैंने बताया था , मैं एक आना कुएं में डाल देता हूँ , यानि अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा देता हूँ, दुसरे से मैं कर्ज चुकता हूँ , यानि इसे मैं अपने वृद्ध माँ-बाप की सेवा में लगा देता हूँ , तीसरा मैं उधार दे देता हूँ , यानि अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में लगा देता हूँ, और चौथा मैं मिटटी में गाड़ देता हूँ , यानि मैं एक पैसे की बचत कर लेता हूँ ताकि समय आने पर मुझे किसी से माँगना ना पड़े और मैं इसे धार्मिक ,सामजिक या अन्य आवश्यक कार्यों में लगा सकूँ। “
राजा को अब किसान की बात समझ आ चुकी थी। राजा की समस्या का समाधान हो चुका था , वह जान चुका था की यदि उसे प्रसन्न एवं संतुष्ट रहना है तो उसे भी अपने अर्जित किये धन का सही-सही उपयोग करना होगा।
मित्रों, देखा जाए तो पहले की अपेक्षा लोगों की आमदनी बढ़ी है पर क्या उसी अनुपात में हमारी प्रसन्नता भी बढ़ी है ? पैसों के मामलों में हम कहीं न कहीं गलती कर रहे हैं , लाइफ को बैलेंस्ड बनाना ज़रूरी है और इसके लिए हमें अपनी आमदनी और उसके इस्तेमाल पर ज़रूर गौर करना चाहिए, नहीं तो भले हम लाखों रूपये कमा लें पर फिर भी प्रसन्न एवं संतुष्ट नहीं रह पाएंगे !

मूर्ख गधा

एक बार दो गधे अपनी पीठ पर बोझा उठाये चले जा रहे थे, उनको काफी लंबा सफर तय करना था.. एक गधे की पीठ पर नमक की भारी बोरियां लदी हुई थीं तो एक की पीठ पर रूई की बोरियां लदी हुई थीं.
जिस रास्ते से वो जा रहे थे उस बीच में एक नदी पड़ी, नदी के ऊपर रेत की बोरियों का कच्चा पुल बना हुआ था.. जिस गधे की पीठ पर नमक की बोरियां थीं, उसका पैर बुरी तरह से फिसल गया और वह नदी के अंदर गिर पड़ा.. नदी में गिरते ही नमक पानी में घुल गया और उसका वजन हल्का हो गया.. वह यह बात बड़ी प्रसन्नता से दुसरे को बताने लगा.. दुसरे गधे ने सोचा कि यह तो बढ़िया युक्ति है, ऐसे में तो मैं भी अपना भार काफी कम कर सकता हूँ और उसने बिना सोचे समझे पानी में छलांग लगा दी, किन्तु रूई के पानी सोख लेने के कारण उसका भार कम होने की जगह बहुत बढ़ गया, जिस कारण वह मुर्ख गधा पानी में डूब गया।
एक संत यह सारा किस्सा अपने शिष्यों के साथ देख रहे थे, उन्होंने अपने शिष्यों से कहा- “मनुष्य को सदा अपना विवेक जागृत रखना चाहिए, बिना अपनी बुद्धि लगाए दूसरों की नकल कर वैसा ही करने वाले सदा उपहास के पात्र बनते हैं। ”
मित्रों हमारी असल जिंदगी में भी यही बात लागू होती है, हम किसी को एक क्षेत्र में सफल होते देख उसे कॉपी करना शुरू कर देते हैं, हमे लगता है कि यदि कोई बंदा अपने क्षेत्र में सफल हो गया तो हमे भी उस क्षेत्र में सफलता मिल जायेगी लेकिन हम शायद यह ध्यान नहीं देते कि उसके पीठ पर नमक वाली बोरी है मतलब उसका इंटरेस्ट अलग है और भूलवश हम रूई की बोरी को लादे छलांग लगा देते हैं मतलब दूसरा टैलेंट या इंटरेस्ट को लादे उस क्षेत्र में सफल होने का ख्वाब देखते है, और अंततः हमें पछताना पड़ता है। इसलिए , दूसरों को देखकर सीखना ठीक है पर उनका अँधा अनुसरण करना उस मूर्ख गधे के समान व्यवहार करना है।

Monday, May 25, 2015

शिकंजी का स्वाद

एक कालेज स्टूडेंट था जिसका नाम था रवि। वह बहुत चुपचाप सा रहता था। किसी से ज्यादा बात नहीं करता था इसलिए उसका कोई दोस्त भी नहीं था। वह हमेशा कुछ परेशान सा रहता था। पर लोग उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे।
एक दिन वह क्लास में पढ़ रहा था। उसे गुमसुम बैठे देख कर सर उसके पास आये और क्लास के बाद मिलने को कहा।
क्लास खत्म होते ही रवि सर के रूम में पहुंचा।
” रवि मैं देखता हूँ कि तुम अक्सर बड़े गुमसुम और शांत बैठे रहते हो , ना किसी से बात करते हो और ना ही किसी चीज में रूचि दिखाते हो ! इसका क्या कारण है ?” , सर ने पुछा।
रवि बोला , ” सर , मेरा पास्ट बहुत ही खराब रहा है , मेरी लाइफ में कुछ बड़ी ही दुखदायी घटनाएं हुई हैं , मैं उन्ही के बारे में सोच कर परेशान रहता हूँ…..”
सर ने ध्यान से रवि की बातें सुनी और उसे संडे को घर पे बुलाया।
रवि नियत समय पर सर के घर पहुँच गया।
” रवि क्या तुम शिकंजी पीना पसंद करोगे ,?” सर ने पुछा।
“जी। ” रवि ने कहा।
सर ने शिकंजी बनाते वक्त जानबूझ कर नमक अधिक डाल दिया और चीनी की मात्रा  कम ही रखी।
शिकंजी का एक घूँट पीते ही रवि ने अजीब सा मुंह बना लिया।
सर ने पुछा , ” क्या हुआ , तुम्हे ये पसंद नहीं आया क्या ?”
” जी, वो इसमे नमक थोड़ा अधिक पड़ गया है….” रवि अपनी बात कह ही रहा था की सर ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा , ” ओफ़-ओ , कोई बात नहीं मैं इसे फेंक देता हूँ , अब ये किसी काम की नहीं …”
ऐसा कह कर सर गिलास उठा ही रहे थे कि रवि ने उन्हें रोकते हुए कहा , ” सर नमक थोड़ा सा अधिक हो गया है तो क्या , हम इसमें थोड़ी और चीनी मिला दें तो ये बिलकुल ठीक हो जाएगा। “
” बिलकुल ठीक रवि यही तो मैं तुमसे सुनना चाहता था….अब इस स्थिति को तुम अपनी लाइफ से कम्पेयर करो , शिकंजी में नमक का ज्यादा होना लाइफ में हमारे साथ हुए बैड एक्सपेरिएन्सेस की तरह है…. और अब इस बात को समझो , शिकंजी का स्वाद ठीक करने के लिए हम उसमे में से नमक नहीं निकाल सकते , इसी तरह हम अपने साथ हो चुकी दुखद घटनाओं को अपने जीवन से अलग नहीं कर सकते , पर जिस तरह हम चीनी डाल कर शिकंजी का स्वाद ठीक कर सकते हैं उसी तरह पुरानी कड़वाहट मिटाने के लिए लाइफ में भी अच्छे अनुभवों की मिठास घोलनी पड़ती है।
यदि तुम अपने भूत का ही रोना रोते रहोगे तो ना तुम्हारा वर्तमान सही होगा और ना ही भविष्य उज्जवल हो पायेगा। “, सर ने अपनी बात पूरी की .
रवि को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था , उसने मन ही मन एक बार फिर अपने जीवन को सही दिशा देने का प्रण लिया।

Sunday, May 24, 2015

सौ ऊंट

अजय  राजस्थान  के  किसी  शहर  में  रहता  था . वह  ग्रेजुएट  था  और  एक  प्राइवेट  कंपनी  में  जॉब  करता  था . पर वो  अपनी  ज़िन्दगी  से  खुश  नहीं  था , हर  समय  वो  किसी  न  किसी  समस्या  से  परेशान  रहता  था  और  उसी  के बारे  में  सोचता  रहता  था .

एक बार  अजय  के  शहर  से  कुछ  दूरी  पर  एक  फ़कीर  बाबा  का  काफिला  रुका  हुआ  था . शहर  में  चारों  और  उन्ही की चर्चा  थी , बहुत  से  लोग  अपनी  समस्याएं  लेकर  उनके  पास  पहुँचने  लगे , अजय  को  भी  इस  बारे  में  पता चला, और  उसने  भी  फ़कीर  बाबा  के  दर्शन  करने  का  निश्चय  किया .
छुट्टी के दिन  सुबह -सुबह ही  अजय  उनके  काफिले  तक  पहुंचा . वहां  सैकड़ों  लोगों  की  भीड़  जुटी  हुई  थी , बहुत इंतज़ार  के  बाद अजय  का  नंबर  आया .
वह  बाबा  से  बोला  ,” बाबा , मैं  अपने  जीवन  से  बहुत  दुखी  हूँ , हर  समय  समस्याएं  मुझे  घेरी  रहती  हैं , कभी ऑफिस  की  टेंशन  रहती  है , तो  कभी  घर  पर  अनबन  हो  जाती  है , और  कभी  अपने  सेहत  को  लेकर  परेशान रहता  हूँ …. बाबा  कोई  ऐसा  उपाय  बताइये  कि  मेरे  जीवन  से  सभी  समस्याएं  ख़त्म  हो  जाएं  और  मैं  चैन  से  जी सकूँ ?
बाबा  मुस्कुराये  और  बोले , “ पुत्र  , आज  बहुत देर  हो  गयी  है  मैं  तुम्हारे  प्रश्न  का  उत्तर  कल  सुबह दूंगा …लेकिन क्या  तुम  मेरा  एक  छोटा  सा  काम  करोगे …?”
“ज़रूर  करूँगा ..”, अजय  उत्साह  के  साथ  बोला .
“देखो  बेटा , हमारे  काफिले  में  सौ ऊंट  हैं  , और  इनकी  देखभाल  करने  वाला  आज  बीमार  पड़  गया  है , मैं  चाहता हूँ  कि  आज  रात  तुम  इनका  खयाल  रखो …और  जब  सौ  के  सौ  ऊंट  बैठ  जाएं  तो  तुम   भी  सो  जाना …”, ऐसा कहते  हुए  बाबा  अपने  तम्बू  में  चले  गए ..
अगली  सुबह  बाबा  अजय  से  मिले  और  पुछा , “ कहो  बेटा , नींद  अच्छी  आई .”
“कहाँ  बाबा , मैं  तो  एक  पल  भी  नहीं  सो  पाया , मैंने  बहुत  कोशिश  की  पर  मैं  सभी  ऊंटों  को  नहीं  बैठा  पाया , कोई  न  कोई  ऊंट  खड़ा  हो  ही  जाता …!!!”, अजय  दुखी  होते  हुए  बोला .”
“ मैं  जानता  था  यही  होगा …आज  तक  कभी  ऐसा  नहीं  हुआ  है  कि  ये  सारे  ऊंट  एक  साथ  बैठ  जाएं …!!!”, “ बाबा  बोले .
अजय  नाराज़गी  के  स्वर  में  बोला , “ तो  फिर  आपने  मुझे  ऐसा  करने  को  क्यों  कहा ”
बाबा बोले  , “ बेटा , कल  रात  तुमने  क्या  अनुभव  किया , यही  ना  कि  चाहे  कितनी  भी  कोशिश  कर  लो  सारे  ऊंट एक  साथ  नहीं  बैठ  सकते … तुम  एक  को  बैठाओगे  तो  कहीं  और  कोई  दूसरा  खड़ा  हो  जाएगा  इसी  तरह  तुम एक  समस्या  का  समाधान  करोगे  तो  किसी  कारणवश  दूसरी खड़ी हो  जाएगी .. पुत्र  जब  तक  जीवन  है  ये समस्याएं  तो  बनी  ही  रहती  हैं … कभी  कम  तो  कभी  ज्यादा ….”
“तो  हमें  क्या  करना चाहिए  ?” , अजय  ने  जिज्ञासावश  पुछा .
“इन  समस्याओं  के  बावजूद  जीवन  का  आनंद  लेना  सीखो … कल  रात  क्या  हुआ   , कई  ऊंट   रात होते -होते  खुद ही  बैठ  गए  , कई  तुमने  अपने  प्रयास  से  बैठा  दिए , पर  बहुत  से  ऊंट तुम्हारे  प्रयास  के  बाद  भी  नहीं बैठे …और जब  बाद  में  तुमने  देखा  तो  पाया  कि तुम्हारे  जाने  के  बाद उनमे से कुछ खुद ही  बैठ  गए …. कुछ  समझे …. समस्याएं  भी  ऐसी  ही  होती  हैं , कुछ  तो  अपने आप ही ख़त्म  हो  जाती  हैं ,  कुछ  को  तुम  अपने  प्रयास  से  हल  कर लेते  हो …और  कुछ  तुम्हारे  बहुत  कोशिश  करने  पर   भी  हल  नहीं  होतीं , ऐसी  समस्याओं  को   समय  पर  छोड़  दो … उचित  समय  पर  वे खुद  ही  ख़त्म  हो  जाती  हैं …. और  जैसा  कि मैंने  पहले  कहा … जीवन  है  तो  कुछ समस्याएं रहेंगी  ही  रहेंगी …. पर  इसका  ये  मतलब  नहीं  की  तुम  दिन  रात  उन्ही  के  बारे  में  सोचते  रहो … ऐसा होता तो ऊंटों की देखभाल करने वाला कभी सो नहीं पाता…. समस्याओं को  एक  तरफ  रखो  और  जीवन  का  आनंद  लो… चैन की नींद सो … जब  उनका  समय  आएगा  वो  खुद  ही  हल  हो  जाएँगी …पुत्र … ईश्वर  के  दिए  हुए  आशीर्वाद  के  लिए उसे धन्यवाद  करना  सीखो  पीड़ाएं  खुद  ही  कम  हो  जाएंगी …” फ़कीर  बाबा  ने  अपनी  बात  पूरी  की  .

Saturday, May 23, 2015

खाली डिब्बा

मैनेजमेंट की शिक्षा प्राप्त कर रहे कुछ स्टूडेंट्स को प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स डेवलप करने के बारे में बताया जा रहा था। कुछ देर पढ़ाने के बाद प्रोफेसर ने बच्चों को एक केस स्टडी सोल्व करने को दी।
जापान की एक साबुन बनाने वाली कम्पनी अपनी क्वालिटी और वर्ल्ड क्लास प्रोसेसेज के लिए जानी जाती थी। पर आज उनके सामने एक अजीब समस्या आ खड़ी हुई , उन्हें कम्प्लेंट मिली की एक कस्टमर ने जब साबुन का डिब्बा खरीदा तो वो खाली था। कंप्लेंट की जांच की गयी तो पता चला चूक कंपनी के तरफ से ही हुई थी , असेंबली लाइन से जब साबुन डिलीवरी डिपार्टमेंट को भेजे जा रहे थे तब एक डिब्बा खाली ही चला गया।
इस घटना से कम्पनी की काफी किरकिरी हुई। कम्पनी के अधिकारी बड़े परेशान हुए कि आखिर ऐसा कैसे हो गया। तुरंत एक हाई लेवल मीटिंग बुलाई गयी , गहन चर्चा हुई , और भविष्य में ऐसी घटना ना हो इसके लिए लोगों से उपाए मांगे गए। बहुत विचार-विमर्श के बाद निश्चय किया गया कि असेंबली लाइन के अंत में एक एक्स-रे मशीन लगायी जायेगी जो एक हाई रेसोलुशन मॉनिटर से कनेक्टेड होगी। मॉनिटर के सामने बैठा व्यक्ति देख पायेगा की डिब्बा खाली है या भरा।
कुछ ही दिनों में ये सिस्टम इम्प्लीमेंट कर दिया गया, पर जब एक छोटी रैंक के कर्मचारी को इस समस्या का पता चला तो उसने इस समस्या का हल एक बड़े ही सस्ते और आसान तरीके से निकाल दिया। एक ऐसा तरीका जिसमे ना लाखों की मशीन खरीदने का खर्च था और ना ही किसी आदमी को रखने की ज़रुरत।
सोचिये अगर आपके सामने ये समस्या आती तो आप क्या करते ?
उस आदमी ने ये किया – उसने एक हाई पावर इलेक्ट्रिकल फैन खरीदा और असेंबली लाइन के सामने लगा दिया , अब हर एक डिब्बे को पंखे की तेज हवा के सामने से होकर गुजरना पड़ता और जैसे ही कोई खाली डिब्बा सामने आता हवा उसे उड़ा कर दूर फेंक देती।
फ्रेंड्स, इस तरह के सोल्युशन को हम आउट ऑफ़ द बॉक्स या क्रिएटिव थिंकिंग कहते हैं। और सबसे अच्छी बात ये है कि इसका किताबी ज्ञान से कोई लेना-देना नहीं होता।  हममें से हर एक व्यक्ति अपनी समस्याओं को सरल तरीकों से सुलझा सकता है पर शायद हम सबसे पहले दिमाग में आने वाले हल को ही पकड़ कर बैठ जाते हैं।  आइये इस केस स्टडी से प्रेरणा लेते हुए हम भी अपनी समस्याओं के नए-नए समाधान ढूंढें और इस जीवन को सरल बनाएं।

दूसरा दीपक

एक बार की बात है , मगध साम्राज्य के सेनापति किसी व्यक्तिगत काम से चाणक्य से मिलने पाटलिपुत्र पहुंचे । शाम ढल चुकी थी , चाणक्य गंगा तट पर अपनी कुटिया में, दीपक के प्रकाश में कुछ लिख रहे थे।
कुछ देर बाद जब सेनापति भीतर दाखिल हुए, उनके प्रवेश करते ही चाणक्य ने सेवक को आवाज़ लगायी और कहा , ” आप कृपया इस दीपक को ले जाइए और दूसरा दीपक जला कर रख दीजिये।”
सेवक ने आज्ञा का पालन करते हुए ठीक वैसा ही किया।
जब चर्चा समाप्त हो गयी तब सेनापति ने उत्सुकतावश प्रश्न किया-“ हे महाराज मेरी एक बात समझ नही आई ! मेरे आगमन पर आपने एक दीपक बुझवाकर रखवा दिया और ठीक वैसा ही दूसरा दीपक जला कर रखने को कह दिया .. जब दोनों में कोई अंतर न था तो ऐसा करने का क्या औचित्य है ?”
इस पर चाणक्य ने मुस्कुराते हुए सेनापति से कहा- “भाई पहले जब आप आये तब मैं राज्य का काम कर रहा था, उसमे राजकोष का ख़रीदा गया तेल था , पर जब मैंने आपसे बात की तो अपना दीपक जलाया क्योंकि आपके साथ हुई बातचीत व्यक्तिगत थी मुझे राज्य के धन को व्यक्तिगत कार्य में खर्च करने का कोई अधिकार नही, इसीलिए मैंने ऐसा किया। ”
उन्होंने कहना जारी रखा-“ स्वदेश से प्रेम का अर्थ है अपने देश की वस्तु को अपनी वस्तु समझकर उसकी रक्षा करना..ऐसा कोई काम मत करो जिससे देश की महानता को आघात पहुचे, प्रत्येक देश की अपनी संस्कृति और आदर्श होते हैं.. उन आदर्शों के अनुरूप काम करने से ही देश के स्वाभिमान की रक्षा होती है। ”

आखिरी सन्देश

ऋषिकेश के एक प्रसिद्द महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था . एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा , ” प्रिय शिष्यों मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है और अब मेरी आत्मा बार -बार मुझे इसे त्यागने को कह रही है , और मैंने निश्चय किया है कि आज के दिन जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा तब मैं इहलोक त्याग दूंगा .”
गुरु की वाणी सुनते ही शिष्य घबड़ा गए , शोक -विलाप करने लगे , पर गुरु जी ने सबको शांत रहने और इस अटल सत्य को स्वीकारने के लिए कहा .
कुछ देर बाद जब सब चुप हो गए तो एक शिष्य ने पुछा , ” गुरु जी , क्या आप आज हमें कोई शिक्षा नहीं देंगे ?”
“अवश्य दूंगा “, गुरु जी बोले
” मेरे निकट आओ और मेरे मुख में देखो .”
एक शिष्य निकट गया और देखने लगा।
“बताओ , मेरे मुख में क्या दिखता है , जीभ या दांत ?”
“उसमे तो बस जीभ दिखाई दे रही है .”, शिष्य बोला
फिर गुरु जी ने पुछा , “अब बताओ दोनों में पहले कौन आया था ?”
“पहले तो जीभ ही आई थी .”, एक शिष्य बोला
“अच्छा दोनों में कठोर कौन था ?”, गुरु जी ने पुनः एक प्रश्न किया .
” जी , कठोर तो दांत ही था . ” , एक शिष्य बोला .
” दांत जीभ से कम आयु का और कठोर होते हुए भी उससे पहले ही चला गया , पर विनम्र व संवेदनशील जीभ अभी भी जीवित है … शिष्यों , इस जग का यही नियम है , जो क्रूर है , कठोर है और जिसे अपने ताकत या ज्ञान का घमंड है उसका जल्द ही विनाश हो जाता है अतः तुम सब जीभ की भांति सरल ,विनम्र व प्रेमपूर्ण बनो और इस धरा को अपने सत्कर्मों से सींचो , यही मेरा आखिरी सन्देश है .”, और इन्ही शब्दों के साथ गुरु जी परलोक सिधार गए .

Friday, May 22, 2015

उपयुक्त समय

अमावस्या का दिन था। एक व्यक्ति उसी दिन समुद्र-स्नान करने के लिए गया, किन्तु स्नान करने के बजाय वह किनारे बैठा रहा।
किसी ने पूछा, “स्नान करने आये हो तो किनारे पर ही क्यों बैठे हो ? स्नान कब करोगे ?
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि “इसी समय समुद्र अशान्त है। उसमे ऊँची-ऊँची लहरे उठ रही है; जब लहरे बंद होगी और जब उपयुक्त समय आएगा तब मैं स्नान कर लूंगा। ”
पूछने वाले को हँसी आ गयी । वह बोला, “भले आदमी ! समुद्र की लहरे क्या कभी रुकने वाली हैं ? ये तो आती रहेंगी । समुद्र-स्नान तो लहरो के थपेड़े सहकर ही करना पड़ता है। नहीं तो स्नान कभी नहीं हो सकता।”
यह हम सभी की बात है। हम सोचते है कि ‘सभी प्रकार की अनुकूलताये होगी, तभी अपनी संकल्पना के अनुरूप कोई सत्कर्म करेंगे , किन्तु सभी प्रकार की अनुकुलताये जीवन में किसी को कभी मिलती नहीं। संसार तो समुद्र के समान है।
जिसमे बाधा रूपी तरंगे तो हमेशा उठती ही रहेगी। एक परेशानी दूर होने पर दूसरी आएगी। जैसे वह व्यक्ति स्नान किए बिना ही रह गया, उसी प्रकार सभी प्रकार की अनुकूलता की राह देखने वाले व्यक्ति से कभी सत्कर्म नहीं हो सकता।
सत्कर्म या किसी और शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समय की राह मत देखो। प्रत्येक दिन और प्रत्येक क्षण सत्कर्म के लिए अनुकूल है। ‘कोई परेशानी नहीं रहेगी तब सत्कर्म करूँगा’ – ऐसा सोचना निरी मूर्खता है।
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्या:।
विघ्नै: पुन:पुनरपि प्रतिहन्यमाना:
प्रारभ्य चोत्तमजना न परित्यजन्ति ।।
विघ्न के भय से जो कार्य की शुरुआत ही नहीं करते वे निम्नकोटि के पुरुष है। कार्य का आरम्भ करने के बाद विघ्न आने पर जो रूक जाते है, वे मध्यम पुरुष है। परंतु कार्य के आरम्भ से ही, बार बार विघ्न आने पर भी जो अपना निश्चित किया कार्य नहीं छोड़ते, वही उत्तम पुरुष होते है।

सुकरात और आईना

दार्शनिक सुकरात दिखने में कुरुप थे। वह एक दिन अकेले बैठे हुए आईना हाथ मे लिए अपना चेहरा देख रहे थे।तभी उनका एक शिष्य कमरे मे आया ; सुकरात को आईना देखते हुए देख उसे कुछ अजीब लगा । वह कुछ बोला नही सिर्फ मुस्कराने लगा। विद्वान सुकरात शिष्य की मुस्कराहट देख कर सब समझ गए और कुछ देर बाद बोले ,”मैं तुम्हारे मुस्कराने का मतलब समझ रहा हूँ…….शायद तुम सोच रहे हो कि मुझ जैसा कुरुप आदमी आईना क्यों देख रहा है ?”
शिष्य कुछ नहीं बोला , उसका सिर शर्म से झुक गया।
सुकरात ने फिर बोलना शुरु किया , “शायद तुम नहीं जानते कि मैं आईना क्यों देखता हूँ”
“नहीं ” , शिष्य बोला ।
गुरु जी ने कहा “मैं कुरूप हूं इसलिए रोजाना आईना देखता हूं”। आईना देख कर मुझे अपनी कुरुपता का भान हो जाता है। मैं अपने रूप को जानता हूं। इसलिए मैं हर रोज कोशिश करता हूं कि अच्छे काम करुं ताकि मेरी यह कुरुपता ढक जाए। “।
शिष्य को ये बहुत शिक्षाप्रद लगी । परंतु उसने एक शंका प्रकट की- ” तब गुरू जी, इस तर्क के अनुसार सुंदर लोगों को तो आईना नही देखना चाहिए ?”
“ऐसी बात नही!” सुकरात समझाते हुए बोले ,” उन्हे भी आईना अवश्य देखना चाहिए”! इसलिए ताकि उन्हे ध्यॉन रहे कि वे जितने सुंदर दीखते हैं उतने ही सुंदर काम करें, कहीं बुरे काम उनकी सुंदरता को ढक ना ले और परिणामवश उन्हें कुरूप ना बना दे ।
शिष्य को गुरु जी की बात का रहस्य मालूम हो गया। वह गुरु के आगे नतमस्तक हो गया।
प्रिय मित्रो, कहने का भाव यह है कि सुन्दरता मन व् भावों से दिखती है। शरीर की सुन्दरता तात्कालिक है जब कि मन और विचारों की सुन्दरता की सुगंध दूर-दूर तक फैलती है।

डिग्रियों की कीमत !

रूस के प्रसिद्ध लेखक लियो टॉलस्टॉय को एक बार अपना काम-काज देखने के लिए एक आदमी की ज़रुरत पड़ी।इस बारे में उन्होंने अपने कुछ मित्रों से भी कह दिया कि यदि उनकी जानकारी में कोई ऐसा व्यक्ति हो तो उसे भेजें।
कुछ दिनों बाद एक मित्र ने किसी को उनके पास भेजा। वह काफी पढ़ा लिखा था और उसके पास कई प्रकार के सर्टिफिकेट और डिग्रियां थीं। वह व्यक्ति टॉलस्टॉय से मिला, लेकिन तमाम डिग्रियां होने के बावजूद टॉलस्टॉय ने उसे नौकरी पर नहीं रखा , बल्कि एक अन्य व्यक्ति जिसके पास ऐसी कोई डिग्री नहीं थी उसका चयन कर लिया…. क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूँ ?”
टॉलस्टॉय ने बताया , “मित्र, जिस व्यक्ति का मैंने चयन किया है उसके पास तो अमूल्य प्रमाणपत्र हैं, उसने मेरे कमरे में आने के पूर्व मेरी अनुमति मांगी। दरवाजे पर रखे गए डोरमैट पर जूते साफ करके रूम में प्रवेश किया। उसके कपड़े साधारण, लेकिन साफसुथरे थे। मैंने उससे जो प्रश्न किये उसके उसने बिना घुमाए-फिराए संक्षिप्त उत्तर दिए , और अंत में मुलाकात पूरी होने पर वह मेरी इज़ाज़त लेकर नम्रतापूर्वक वापस चला गया। उसने कोई खुशामद नहीं की, ना किसी की सिफारिस लाया, अधिक पढ़ा-लिखा ना होने के बावजूद उसे अपनी काबिलियत पर विश्वास था, इतने सारे प्रमाणपत्र बहुत कम लोगों के पास होते है।
और तुमने जिसे व्यक्ति को भेजा था उसके पास इनमे से कोई भी प्रमाणपत्र नहीं था , वह सीधा ही कमरे में चला आया, बिना आज्ञा कुर्सी पर बैठ गया , और अपनी काबिलियत की जगह तुमसे जान-पहचान के बारे में बताने लगा….. तुम्ही बताओं, उसकी इन डिग्रियों की क्या कीमत है ?”
मित्र टॉलस्टॉय की बात समझ गया, वह भी असल प्रमाणपत्रों की महत्ता जान चुका था।

तीन गांठें


भगवान बुद्ध अक्सर अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। एक दिन प्रातः काल बहुत से भिक्षुक उनका प्रवचन सुनने के लिए बैठे थे । बुद्ध समय पर सभा में पहुंचे, पर आज शिष्य उन्हें देखकर चकित थे क्योंकि आज पहली बार वे अपने हाथ में कुछ लेकर आए थे। करीब आने पर शिष्यों ने देखा कि उनके हाथ में एक रस्सी थी। बुद्ध ने आसन ग्रहण किया और बिना किसी से कुछ कहे वे रस्सी में गांठें लगाने लगे ।
वहाँ उपस्थित सभी लोग यह देख सोच रहे थे कि अब बुद्ध आगे क्या करेंगे ; तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया, ‘ मैंने इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं , अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या यह वही रस्सी है, जो गाँठें लगाने से पूर्व थी ?’
एक शिष्य ने उत्तर में कहा,” गुरूजी इसका उत्तर देना थोड़ा कठिन है, ये वास्तव में हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। एक दृष्टिकोण से देखें तो रस्सी वही है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है । दूसरी तरह से देखें तो अब इसमें तीन गांठें लगी हुई हैं जो पहले नहीं थीं; अतः इसे बदला हुआ कह सकते हैं। पर ये बात भी ध्यान देने वाली है कि बाहर से देखने में भले ही ये बदली हुई प्रतीत हो पर अंदर से तो ये वही है जो पहले थी; इसका बुनियादी स्वरुप अपरिवर्तित है।”
“सत्य है !”, बुद्ध ने कहा ,” अब मैं इन गांठों को खोल देता हूँ।”यह कहकर बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक दुसरे से दूर खींचने लगे। उन्होंने पुछा, “तुम्हें क्या लगता है, इस प्रकार इन्हें खींचने से क्या मैं इन गांठों को खोल सकता हूँ?”
“नहीं-नहीं , ऐसा करने से तो या गांठें तो और भी कस जाएंगी और इन्हे खोलना और मुश्किल हो जाएगा। “, एक शिष्य ने शीघ्रता से उत्तर दिया।
बुद्ध ने कहा, ‘ ठीक है , अब एक आखिरी प्रश्न, बताओ इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा ?’
शिष्य बोला ,’”इसके लिए हमें इन गांठों को गौर से देखना होगा , ताकि हम जान सकें कि इन्हे कैसे लगाया गया था , और फिर हम इन्हे खोलने का प्रयास कर सकते हैं। “
“मैं यही तो सुनना चाहता था। मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है, बिना कारण जाने निवारण असम्भव है। मैं देखता हूँ कि अधिकतर लोग बिना कारण जाने ही निवारण करना चाहते हैं , कोई मुझसे ये नहीं पूछता कि मुझे क्रोध क्यों आता है, लोग पूछते हैं कि मैं अपने क्रोध का अंत कैसे करूँ ? कोई यह प्रश्न नहीं करता कि मेरे अंदर अंहकार का बीज कहाँ से आया , लोग पूछते हैं कि मैं अपना अहंकार कैसे ख़त्म करूँ ?
प्रिय शिष्यों , जिस प्रकार रस्सी में में गांठें लग जाने पर भी उसका बुनियादी स्वरुप नहीं बदलता उसी प्रकार मनुष्य में भी कुछ विकार आ जाने से उसके अंदर से अच्छाई के बीज ख़त्म नहीं होते। जैसे हम रस्सी की गांठें खोल सकते हैं वैसे ही हम मनुष्य की समस्याएं भी हल कर सकते हैं। इस बात को समझो कि जीवन है तो समस्याएं भी होंगी ही , और समस्याएं हैं तो समाधान भी अवश्य होगा, आवश्यकता है कि हम किसी भी समस्या के कारण को अच्छी तरह से जानें, निवारण स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा । ” , महात्मा बुद्ध ने अपनी बात पूरी की।

Thursday, May 21, 2015

दो शब्द

बहुत समय पहले की बात है , एक प्रसिद्द गुरु अपने मठ में शिक्षा दिया करते थे। पर यहाँ शिक्षा देना का तरीका कुछ अलग था , गुरु का मानना था कि सच्चा ज्ञान मौन रह कर ही आ सकता है; और इसीलिए मठ में मौन रहने कानियम था । लेकिन इस नियम का भी एक अपवाद था , दस साल पूरा होने पर कोई शिष्य गुरु से दो शब्द बोल सकता था।
पहला दस साल बिताने के बाद एक शिष्य गुरु के पास पहुंचा , गुरु जानते थे की आज उसके दस साल पूरे हो गए हैं ; उन्होंने शिष्य को दो उँगलियाँ दिखाकर अपने दो शब्द बोलने का इशारा किया।
शिष्य बोला , ” खाना गन्दा “
गुरु ने ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
इसी तरह दस साल और बीत गए और एक बार फिर वो शिष्य गुरु के समक्ष अपने दो शब्द कहने पहुंचा।
” बिस्तर कठोर ” , शिष्य बोला।
गुरु ने एक बार फिर ‘हाँ’ में सर हिला दिया।
करते-करते दस और साल बीत गए और इस बार वो शिष्य गुरु से मठ छोड़ कर जाने की आज्ञा लेने के लिए उपस्थित हुआ और बोला , “नहीं होगा” .
“जानता था” , गुरु बोले , और उसे जाने की आज्ञा दे दी और मन ही मन सोचा जो थोड़ा सा मौका मिलने पर भी शिकायत करता है वो ज्ञान कहाँ से प्राप्त कर सकता है।
फ्रेंड्स, बहुत से लोग अपनी लाइफ कम्प्लेन करने या शिकायत करने में ही बीता देते हैं, और उस शिष्य की तरह अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं। शिष्य ने पहले दस साल सिर्फ ये बताने के लिए इंतज़ार लिया कि खाना गन्दा है ; यदि वो चाहता तो इस समय में वो खुद खाना बनाना सीख कर अपने और बाकी लोगों के लिए अच्छा खाना बना सकता था , चीजों को बदल सकता था… हमें यही करना चाहिए; हमें शिाकयात करने की जगह चीजों को सही करने की दिशा में काम करना चाहिए। और कम्प्लेन करने की जगह , “हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं।* “

शब्दों की ताकत

एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, ” अरे छोटू , कहाँ जा रहे हो तुम ?”

“मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ !”, चीता रोमांचित होते हुए बोला।
“हा-हा-हा-“, लकड़बग्घा हंसा ,” अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं , तुम इतने छोटे हो , तुम्हे शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है , तुम क्या शिकार करोगे !!”
लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया , दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा , कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा।
अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला। कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा , ” कहाँ जा रहे हो बेटा ?”
“बंदर मामा, मैं शिकार पर जा रहा हूँ। ” चीता बोला।
“बहुत अच्छे ” बन्दर बोला , ” तुम्हारी ताकत और गति के कारण तुम एक बेहद कुशल शिकारी बन सकते हो , जाओ तुम्हे जल्द ही सफलता मिलेगी।”
यह सुन चीता उत्साह से भर गया और कुछ ही समय में उसने के छोटे हिरन का शिकार कर लिया।
मित्रों , हमारी ज़िन्दगी में “शब्द” बहुत मायने रखते हैं। दोनों ही दिन चीता तो वही था, उसमे वही फूर्ति और वही ताकत थी पर जिस दिन उसे डिस्करेज किया गया वो असफल हो गया और जिस दिन एनकरेज किया गया वो सफल हो गया।
इस छोटी सी कहानी से हम तीन ज़रूरी बातें सीख सकते हैं :
पहली , हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने “शब्दों” से किसी को encourage करें , discourage नहीं। Of course, इसका ये मतलब नहीं कि हम उसे उसकी कमियों से अवगत न करायें , या बस झूठ में ही एन्करजे करें।
दूसरी, हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा निगेटिव सोचते और बोलते हों, और उनका साथ करें जिनका outlook positive हो।
तीसरी और सबसे अहम बात , हम खुद से क्या बात करते हैं , self-talk में हम कौन से शब्दों का प्रयोग करते हैं इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखें , क्योंकि ये “शब्द” बहुत ताकतवर होते हैं , क्योंकि ये “शब्द” ही हमारे विचार बन जाते हैं , और ये विचार ही हमारी जिन्दगी की हकीकत बन कर सामने आते हैं , इसलिए दोस्तों , words की power को पहचानिये, जहाँ तक हो सके पॉजिटिव वर्ड्स का प्रयोग करिये , इस बात को समझिए कि ये आपकी ज़िन्दगी बदल सकते हैं।

सपनों का घर

किसी शहर से कुछ दूर एक किसान अपने गाँव में रहता था । वैसे तो वह संपन्न था पर फिर भी वो अपने जीवन से खुश नहीं था । एक दिन उसने निश्चय किया कि वो अपनी सारी ज़मीन -जायदाद बेच कर किसी अच्छी जगह बस जाएगा ।
अगले ही दिन उसने एक जान -पहचान के रियल एस्टेट एजेंट को बुलाया और बोला , ” भाई , मुझे तो बस किसी तरह ये जगह छोड़नी है, बस कोई सही प्रॉपर्टी दिल दो तो बात बन जाए !”“क्यों , क्या दिक्कत हो गयी यहाँ आपको ?”, एजेंट ने पुछा ।
“आओ मेरे साथ “, किसान बोला , ” देखो कितनी समस्याएं हैं यहाँ पर , ये उबड़-खाबड़ रास्ते देखो , और ये छोटी सी झील देखो , इसके चक्कर में पूरा घूम कर रास्ता पार करना पड़ता है। ।। इन छोटे -छोटे पहाड़ों को देखो , जानवरों को चराना कितना मुश्किल होता है … और ये देखो ये बागीचा , आधा समय तो इसकी सफाई और रख-रखाव में ही चला जाता है … क्या करूँगा मैं ऐसी बेकार प्रॉपर्टी का…”
एजेंट ने घूम -घूम कर इलाके का जायजा लिया और कुछ दिन बाद किसी ग्राहक के साथ आने का वादा किया ।
इस घटना के एक – दो दिन बाद किसान सुबह का अखबार पढ़ रहा था कि कहीं किसी अच्छी प्रॉपर्टी का पता चल जाए जहाँ वो सब बेच -बाच कर जा सके ।
तभी उसकी नज़र एक आकर्षक ऐड पर पड़ी , ” लें सपनो का घर , एक शांत सुन्दर जगह , प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर, सुन्दर झील और पहाड़ियों के बीच , शहर की भीड़ -भाड़ से उचित दूरी पर बसाएं एक स्वस्थ -सुन्दर आशियाना । संपर्क करें -XXXXXXX”
किसान को ये ब्यौरा बहुत पसंद आया , वो बार-बार उस ऐड को पढ़ने लगा , पर थोड़ा ध्यान देने पर उसे लगा कि ये तो उसी की प्रॉपर्टी का ऐड है , इस बात की पुष्टि करने के लिए उसने दिए हुए नंबर पर फ़ोन लगाया और सचमुच ये उसी की प्रॉपर्टी का ऐड था ।
तब किसान को एहसास हुआ कि वो वाकई में अपनी मनचाही जगह पर रहता है और ये उसकी गलती थी कि उसने अपनी ही चीजों को हमेशा गलत ढंग से देखा । अब किसान वहीँ रहना चाहता था ; उसने तुरंत अपने एजेंट को कॉल किया और इस ऐड को हटाने को कहा ।
Friends, इस किसान की तरह ही कई बार हमें भी अपनी life से बहुत complaints होती हैं , लगता है कि हमारा जीवन ही सबसे बेकार है , हमारी नौकरी में ही सबसे ज्यादा प्रेशर है , हमारी पर्सनालिटी ही सबसे unattractive है…
पर क्या आपने कभी दूसरों की नज़र से अपनी life को देखने की कोशिश की है ?
क्या वाकई आपकी लाइफ इतनी problematic है या आपने खुद ज़रुरत से ज्यादा उसे ऐसा बना रखा है ?
कहीं किसान की तरह आप भी अपने जीवन के सौंदर्य को अनदेखा तो नहीं कर रहे हैं ?
कहीं आपको भी आपकी खुशियां गिनाने के लिए किसी paper-advertisement की ज़रुरत तो नहीं 

सफलता का पाठ

इमरान ने बड़े उत्साह के साथ एक बिज़नेस की शुरुआत की , पर 5-6 महीने बाद किसी बड़े घाटे की वजह से उसे बिज़नेस बंद करना पड़ा । इस कारण से वह बहुत उदास रहने लगा ।  और काफी समय बीत जाने पर भी उसने कोई और काम नहीं शुरू किया । 

इमरान की इस परेशानी का पता प्रोफेसर कृष्णन को लगा , जो पहले कभी उसे पढ़ा चुके थे । “
 उन्होंने एक दिन इमरान को अपने घर बुलाया और पूछा , ” क्या बात है आज -कल तुम बहुत परेशान रहते हो ?”
“जी कुछ नहीं बस मैंने एक काम शुरू किया था पर मैं जैसा चाहता था वैसे रिजल्ट्स नहीं आये और मुझे काम बंद करना पड़ा , इसीलिए थोड़ा परेशान हूँ । “, इमरान बोला ।
प्रोफेसर बोले , ” ये तो होता ही रहता है , इसमें इतना मायूस होने की क्या बात है । “
” लेकिन मैंने इतनी कड़ी मेहनत की थी , मैं तन-मन-धन से इस काम में जुटा था , फिर मैं नाकामयाब कैसे हो सकता हूँ । ” , इमरान कुछ झुंझलाते हुए बोला ।
प्रोफेसर कुछ देर के लिए शांत हो गए , फिर कुछ सोच कर उन्होंने कहा , ” इमरान , मेरे पीछे आओ , “टमाटर के इस मरे हुए पौधे को देखो । “
” ये तो बेकार हो चुका है , इसे देखने से क्या फायदा । “, इमरान बोला ।
प्रोफेसर बोले , ” मैंने जब इसे बोया था तो हर एक वो चीज की जो इसके लिए सही हो ।  मैंने इसे समय -समय पर पानी दिया , खाद डाली , कीटनाशक का छिड़काव किया , पर फिर भी ये मृत हो गया । “
“तो क्या ?”, इमरान बोला ।
प्रोफेसर ने समझाया , “चाहे तुम कितना भी प्रयास करो, पर अंततः क्या होता है तुम उसे तय नहीं कर सकते ।  बस तुम उन्ही चीजों पर कंट्रोल कर सकते हो जो तुम्हारे हाथ में हैं , और बाकी चीजों को तुम्हे भगवान पर छोड़ देना चाहिए । “,
“तो मैं क्या करूँ ? अगर कामयाबी की गारंटी नहीं है तो फिर प्रयास करने से क्या फायदा ?”,इमरान बोला ।
“इमरान , बहुत से लोग बस इसी एक्सक्यूज का सहारा लेकर अपनी लाइफ में कुछ बड़ा करने का प्रयास नहीं करते कि जब सफलता की स्योरटी ही नहीं है तो फिर ट्राई करने से क्या फायदा !”, प्रोफेसर बोले ।
“हाँ , ठीक ही तो सोचते हैं लोग ।  इतनी मेहनत , इतना पैसा , इतना समय देने के बाद भी अगर सफलता चांस की ही बात है , तो इतना सब कुछ करने से क्या फायदा । “, इमरान बाहर निकलते हुए बोला ।
” रुको -रुको , जाने से पहले जरा इस दरवाजे को खोलकर तो देखो । “, प्रोफेसर ने एक दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा ।

इमरान ने दरवाजा खोला , सामने बड़े -बड़े लाल टमाटरों का ढेर पड़ा हुआ था ।

“ये कहाँ से आये ?”, इमरान ने आश्चर्य से पूछा।
“बेशक, टमाटर के सारे पौधे नहीं मरे थे ।  अगर तुम लगातार सही चीजें करते रहो , तो सक्सेस पाने के तुम्हारा चांस बहुत बढ़ जाता है ।  लेकिन अगर तुम एक -दो फेलियरस की वजह से हार मान कर बैठ जाओ तो तुम्हे लाइफ कोई भी रिवॉर्ड नहीं देती।  “, प्रोफेसर ने अपनी बात पूरी की ।
इमरान अब सफलता का पाठ पढ़ चुका था,  वह समझ गया कि उसे अब क्या करना है और वो एक नए जोश के साथ बाहर निकल पड़ा ।
दोस्तों , इमरान की तरह ही बहुत से लोग अपनी किसी एक असफलता को ही आगे प्रयास न करने की वजह बना लेते हैं । और ये सच है कि हम चाहे जितने भी प्रयास कर लें final outcome क्या होगा हम इस पर control नहीं कर सकते ,पर ये भी सच है कि जो लोग सफलता का स्वाद चखने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं उन्हें आज नहीं तो कल वो मिल ही जाती है ।  याद रखिये कि हर एक नाकामयाबी; कामयाबी की तरफ ही एक कदम होता है ।